विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव चौहान) | जग्गदेव के अल्पकालीन शासन के पश्चात् विग्रहराज चतुर्थ 1158 ई. के लगभग अजमेर का शासक बना। अधिकांश इतिहासकार इसे भी ‘बीसलदेव चौहान’ कहते हैं
विग्रहराज चतुर्थ
जग्गदेव के अल्पकालीन शासन (1155-1158 ई.) के पश्चात् विग्रहराज चतुर्थ 1158 ई. के लगभग अजमेर का शासक बना। अधिकांश इतिहासकार इसे भी ‘बीसलदेव चौहान’ कहते हैं। शिवालिक अभिलेख के अनुसार इसने अपने राज्य की सीमाओं का अत्यधिक विस्तार किया। उसने गजनी के शासक अमीर खुशरुशाह (हम्मीर) व दिल्ली के तोमर शासक तंवर को परास्त किया एवं दिल्ली को अपने राज्य में मिलाया।
चालुक्य शासक कुमारपाल से पाली, नागौर व जालौर छीन लिये तथा भादानकों को भी पराजित किया। वह साहित्य प्रेमी व साहित्यकारों का आश्रयदाता भी था। उसके दरबार में सोमदेव जो बीसलदेव कां राजकवि था, ने ‘ललित विग्रहराज’ नाटक की रचना की। इसमें इन्द्रपुर की राजकुमारी देसल देवी व बीसलदेव का प्रेम प्रसंग का वर्णन है। विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण जयानक भट्ट ने विग्रहराज को ‘कवि बान्धव’ (कवि बंधु) की उपाधि प्रदान की।
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स्वयं विग्रहराज ने ‘हरिकेलि’ नाटक की रचना की। इनके अतिरिक्त उसने अजमेर में एक ‘संस्कृत पाठशाला’ का निर्माण करवाया। (अढ़ाई दिन के झोपडें की सीढ़ियों में मिले दो पाषाण अभिलेखों के अनुसार) जिसे कालांतर में मुहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने अढ़ाई दिन के झोंपड़े में परिवर्तित कर दिया। वर्तमान टोंक जिले में बीसलपुर कस्बा एवं बीसल सागर बाँध का निर्माण भी बीसलदेव द्वारा करवाया गया माना जाता है।

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दिल्ली शिवालिक अभिलेख” से ज्ञात होता है कि विग्रहराज चतुर्थ ने म्लेच्छों को बार-बार पराजित किया और आर्यावर्त देश को सचमुच आर्यों के निवास के उपयुक्त बना दिया। उसने अपने वंशजों से भी इसी प्रकार की विजयों को करने की आकांक्षा रखी। शिवालिक अभिलेख को पढ़ते ही यह स्पष्ट हो जाता है कि पृथ्वीराज तृतीय ने उसके एक-एक वाक्य को हृदयंगम किया था इससे ज्ञात होता है चाहमान शासकों ने मुसलमान आक्रमणों को आर्यधर्म और संस्कृति के विरुद्ध हिंदुत्व की जड़ पर प्रहार करने वाली एक समस्या के रूप में देखा था। इसके काल को चौहानों का ‘स्वर्णयुग’ भी कहा जाता है।
विग्रहराज चतुर्थ के बाद ‘अपरगांगेय’ और उसके बाद ‘पृथ्वीराज द्वितीय’ गद्दी पर बैठा जिसने 1169 ई. तक शासन किया। उसने मुसलमानों को पूरी तरह दबाया।
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विग्रहराज चतुर्थ FAQ
Ans – जग्गदेव के बाद अजमेर का शासक विग्रहराज 4 बने थे.
Ans – विग्रहराज IV अजमेर के शासक 1158 ई. को बना था.
Ans – विग्रहराज IV को अधिकांश इतिहासकार ‘बीसलदेव चौहान’ कहते है.
Ans – ‘हरिकेलि’ नाटक की रचना विग्रहराज ने की थी.
Ans – चौहानों का ‘स्वर्णयुग’ विग्रहराज चतुर्थ के राज्यकाल को कहा जाता है.
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