केसरिया करने की प्रथा

केसरिया करने की प्रथा | राजपूत योद्धा पराजय की स्थिति में शत्रु पक्ष पर केसरिया साफा-वस्त्र धारण कर टूट पड़ते और अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो जाते थे वह केसरिया करना कहलाता था

केसरिया करने की प्रथा

किसी राज्य पर कोई दुश्मन या विदेशी आक्रमण होता और युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी तब राजा सेनापति सभी सैनिक केसरिया साफा (पगड़ी) सिर पर बाँध कर मरने मारने के निश्चय के साथ युद्ध में दुश्मन सेना पर टूट पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करेंगे।

यह भी देखे :- जौहर प्रथा
केसरिया करने की प्रथा
केसरिया करने की प्रथा
यह भी देखे :- मध्यकालीन सेवक जातियाँ

राजपूत योद्धा पराजय की स्थिति में शत्रु पक्ष पर केसरिया साफा-वस्त्र धारण कर टूट पड़ते और अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो जाते थे वह केसरिया करना कहलाता था।

राजपूत योद्धा पराजय की स्थिति में पलायन करने या आत्म समपर्ण करने की बजाय केसरिया वस्त्र धारण कर दुर्ग के द्वार पर भूखे शेर की तरह शत्रुओं पर टूटकर उन्हें मारकर खुद भी वीरगति को प्राप्त करते थे.

यह भी देखे :- मध्यकालीन कृषक जातियां

केसरिया करने की प्रथा FAQ

Q 1. केसरिया करना किसे कहा जाता था?

Ans – राजपूत योद्धा पराजय की स्थिति में शत्रु पक्ष पर केसरिया साफा-वस्त्र धारण कर टूट पड़ते और अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो जाते थे वह केसरिया करना कहलाता था.

Q 2. केसरिया कब धारण किया जाता था?

Ans – केसरिया किसी राज्य पर कोई दुश्मन या विदेशी आक्रमण होता और युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी, तब धारण किया जाता था.

आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.. यदि आपको हमारा यह आर्टिकल पसन्द आया तो इसे अपने मित्रों, रिश्तेदारों व अन्य लोगों के साथ शेयर करना मत भूलना ताकि वे भी इस आर्टिकल से संबंधित जानकारी को आसानी से समझ सके.

यह भी देखे :- मध्यकालीन पशुपालक जातियां

Follow on Social Media


केटेगरी वार इतिहास


प्राचीन भारतमध्यकालीन भारत आधुनिक भारत
दिल्ली सल्तनत भारत के राजवंश विश्व इतिहास
विभिन्न धर्मों का इतिहासब्रिटिश कालीन भारतकेन्द्रशासित प्रदेशों का इतिहास

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *