शाहजहाँ की राजपूत नीति | शाहजहाँ से पूर्व जब हिन्दू राजाओं को उत्तराधिकार की मान्यता, उपाधियां या मनसब दिए जाते थे तो मुगल सम्राट स्वयं उनके मस्तक पर टीका लगाया करता था
शाहजहाँ की राजपूत नीति
शाहजहाँ से पूर्व जब हिन्दू राजाओं को उत्तराधिकार की मान्यता, उपाधियां या मनसब दिए जाते थे तो मुगल सम्राट स्वयं उनके मस्तक पर टीका लगाया करता था। शाहजहाँ ने इस परम्परा को तो बंद नहीं किया, लेकिन टीका लगाने की रस्म सम्पन्न करने का काम अपने प्रधानमंत्री पर ही छोड़ दिया।
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राजा भीम सिसोदिया की स्वामीभक्तिपूर्ण सेवाओं के बदले शाहजहाँ ने उसके पुत्र रायसिंह को टोंक तथा टोर्ड का एक स्वतंत्र राज्य दिया, परन्तु रायसिंह की मृत्यु के बाद वह स्थायी नहीं रह सका। इसके विपरीत राणा अमरसिंह के दूसरे पौत्र सुजानसिंह सिसोदिया को जब शाहजहाँ ने फूलिया परगना दिया तो उसने शाहपुरा नगर के साथ स्थायी रूप से शाहपुरा राज्य की स्थापना की। बीकानेर एवं जोधपुर की सीमा पर शाहजहाँ ने ‘नागौर’ राज्य की स्थापना कर दी, जिसका शासक अमरसिंह राठौड़ को बनाया जो दोनों राठौड़ राज्यों के लिए निरंतर कांटा बना रहा।
कोटा राज्य की स्थापना जब जहाँगीर ने अपने विद्रोही पुत्र खुर्रम को बंदी बनाया तो उसे बूंदी के राव रतनसिंह एवं उसके पुत्र माधोसिंह की देखरेख में रखा गया। माधोसिंह ने बंदी शहजादे खुर्रम के साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया तथा अंतिम समय में बंदीगृह से गुप्त रूप से मुक्त किया। इसे शहजादे खुर्रम ने बहुत बड़ा एहसान माना।
जब खुर्रम (शाहजहाँ) मुगल सम्राट बना तो उसने माधोसिंह हाड़ा के नाम कोटा राज्य का फरमान जारी कर दिया। 1631 ई. में राव रतनसिंह की मृत्यु के बाद माधोसिंह को पृथक् रूप से कोटा का शासक स्वीकार कर लिया। यह बूँदी राज्य के लिए बड़ा घातक सिद्ध हुआ।
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शाहजहाँ की राजपूत नीति FAQ
Ans – बीकानेर एवं जोधपुर की सीमा पर शाहजहाँ ने ‘नागौर’ राज्य की स्थापना की थी.
Ans – शाहजहाँ ने ‘नागौर’ राज्य अमरसिंह राठौड़ को बनाया था.
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