सवाई प्रताप सिंह | महाराजा पृथ्वीसिंह की मृत्यु होने पर उनके छोटे भाई प्रतापसिंह ने 1778 ई. में जयपुर का शासन संभाला। इनके काल में अंग्रेज सेनापति जॉर्ज थॉमस ने जयपुर पर आक्रमण किया
सवाई प्रताप सिंह
महाराजा पृथ्वीसिंह की मृत्यु होने पर उनके छोटे भाई प्रतापसिंह ने 1778 ई. में जयपुर का शासन संभाला। महाराज पृथ्वीसिंह के अंतिम दिनों में अलवर के नरूका शासक प्रतापराव ने बसवा पर चढ़ाई की। महाराजा प्रतापसिंह ने अपने सामंतों के साथ उस पर आक्रमण किया और ‘राजगढ़ के युद्ध’ में प्रतापराव को परास्त कर शांति स्थापित की। इनके काल में अंग्रेज सेनापति जॉर्ज थॉमस ने जयपुर पर आक्रमण किया।
अंग्रेजों से संधि का प्रयास
31 मई, 1802 को जयपुर का मंत्री दीनाराम बोहरा कर्नल कोलीन्स, अंग्रेज रेजीडेन्ट से मिला और उसे बतलाया कि प्रतापसिंह की अंग्रेजी सरकार से सुरक्षात्मक संधि करने की बहुत इच्छा है लेकिन उसने तब भी इस विषय में बात तक करने से मना कर दिया। लेकिन ई. सन् 1803 के आरम्भ में अंग्रेजों के लिए आवश्यक हो गया कि वे मरहठों व उसके सहायकों पिण्डारियों से अपने राज्य को बचाये।
यह भी देखे :- महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम
गवर्नर जनरल वेलेजली ने 1803 की 27 जून को ठीक हो सोचा कि राजपूताने के राजपूत राजा हिन्दुस्तान के उत्तर-पश्चिम में सुरक्षा के लिये ठीक रहेंगे। अतः उनको भी उनकी स्वतंत्रता की गारंटी दे दी जाए अतः इस नीति के अनुसार संधि की शर्त स्वीकार कर ली। इन शर्तों के जयपुर पहुंचने के पहले ही प्रतापसिंह की मृत्यु हो गई अतः इन पर विचार कुछ समय नहीं किया जा सका।
सांस्कृतिक उपलब्धियां
सवाई प्रताप सिंह का साहित्य का विकास
प्रतापसिंह जीवन भर युद्धों में उलझे रहे फिर भी उनके काल में कला एवं साहित्य में अत्यधिक उन्नति हुई। वे विद्वानों एवं संगीतज्ञों के आश्रयदाता होने के साथ-साथ स्वयं भी ‘ग्रजनिधि’ नाम से काव्य रचना करते थे। इनकी रचनाओं में प्रीतिलता, स्नेह संग्राम, फागरंग, प्रेम प्रकाश, मुरली विहार, रंग चौपड़, प्रीति पच्चीसी, प्रेमपंथ, ब्रज शृंगार, दुख हरण वेलि, रमक झमक बत्तीसी, श्री ब्रजनिधि मुक्तावली एवं ब्रजनिधि पद संग्रह प्रसिद्ध हैं। इनकी कविता ढूंढाड़ी एवं ब्रज भाषाओं में हैं।
सवाई प्रताप सिंह का संगीत कला का विकास
सवाई प्रतापसिंह के समय संगीत कला का विशेष विकास हुआ स्वयं प्रतापसिंह भी एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। उस्ताद चांद खां महाराजा प्रतापसिंह के संगीत गुरु थे तथा गणपति भारती उनके काव्य गुरु थे। इनके दरबारी राधाकृष्ण ने संगीत ग्रंथ ‘राग रत्नाकर’, पुण्डरीक विठ्ठल ने ‘नर्तन निर्णय’, ‘राग चन्द्रसेन’, ‘ब्रजकला निधि’ की रचना की। उन्होंने जयपुर में ब्रह्मर्षि ब्रजपाल भट्ट के नेतृत्व में एक संगीत सम्मेलन करवाकर ‘राधागोविंद संगीत सार’ नामक संगीत ग्रन्थ की रचना करवाई। उसके समय में 22 विभिन्न क्षेत्रों के गुणीजनों एवं संगीतज्ञों की एक संगोष्ठी थी जिसे ‘गंधर्व बाईसी’ कहा जाता था। इन 22 कवियों में मनीराम मुख्य था।
सन् 1785 में इसने ‘प्रतापचन्द्रिका’ की रचना की थी। श्री भोलानाथ शुक्ल ने शृंगाररस प्रधान ‘कर्ण कुतूहल’ तथा ‘श्रीकृष्ण लीलामृत’ की रचना की थी। प्रसिद्ध कवि पद्माकर भी इसी के दरबार में था। उसको ‘कविचक्र चूड़ामणि’ की पदवी महाराजा ने दी थी। उसके ग्रंथों में ‘जगदविनोद’ अति प्रसिद्ध है। इसके समय में आईने-ए-अकबरी का अनुवाद भी गुमानीराम नामक व्यक्ति ने किया था। इसी ने दीवाने हाफिज का भी दोबद्ध अनुवाद हिन्दी में किया था।
यह भी देखे :- बगरु का युद्ध
सवाई प्रताप सिंह का चित्रकला का विकास
जयपुर के महाराजा सवाई प्रतापसिंह के समय में राग-रागिनियां, दुर्गासप्तशती, रामायण, भागवत, गीतगोविन्द विषय के अनेक चित्र बने गोवर्धन धारण का अति सजीव सुन्दर चित्र भी प्रतापसिंह युग की विशेषताओं का द्योतक है। इसी के साथ राधा-कृष्ण की लीलाओं, नायिका भेद, बारहमासा आदि का चित्रण प्रमुखता से हुआ।
सवाई प्रताप सिंह का स्थापत्य कला का विकास
उन्होंने 1799 ई. में जयपुर में हवामहल का निर्माण करवाया जो पाँच मंजिला है। इसका वास्तुकार श्री लालचंद था। इसकी विशेषता यह है कि यह बिना नींव के ही समतल जमीन पर बना हुआ है। महाराजा प्रतापसिंह कृष्ण के पक्के भक्त थे तथा हवामहल भगवान कृष्ण को ही समर्पित है इसलिए इसकी बाहरी आकृति भगवान कृष्ण के मुकुट जैसी है। हवामहल में छोटी बड़ी कुल 953 खिड़किया है तथा मुख्य खिड़कियों की संख्या 365 है। प्रतापसिंह ने ‘जलमहल’ को पूर्णता प्रदान की ताकि गर्मी के दिनों में रात्रि काल में वहाँ शाही आयोजन हो सकें।
यह भी देखे :- राजमहल का युद्ध
सवाई प्रताप सिंह FAQ
Ans – महाराजा पृथ्वीसिंह की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई प्रतापसिंह ने जयपुर का शासन संभाला था.
Ans – प्रतापसिंह ने 1778 ई. में जयपुर का शासन संभाला था.
Ans – प्रतापसिंह ने 1803 ई. को अंग्रेजों से संधि की थी.
Ans – जयपुर में हवामहल का निर्माण 1799 ई. में प्रतापसिंह ने करवाया था.
Ans – हवामहल का वास्तुकार श्री लालचंद था.
Ans – ‘जलमहल’ को पूर्णता प्रतापसिंह ने प्रदान की थी.
आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.. यदि आपको हमारा यह आर्टिकल पसन्द आया तो इसे अपने मित्रों, रिश्तेदारों व अन्य लोगों के साथ शेयर करना मत भूलना ताकि वे भी इस आर्टिकल से संबंधित जानकारी को आसानी से समझ सके.
यह भी देखे :- जयसिंह प्रथम के उत्तराधिकारी