चोल साम्राज्य की शासन व्यवस्था

चोल साम्राज्य की शासन व्यवस्था | चोल प्रशासन में भाग लेने वाले उच्च पदाधिकारियों को पेरुन्दरम कहा जाता था व निम्न श्रेणी के पदाधिकारियों को शेरुन्दरम कहा जाता था

चोल साम्राज्य की शासन व्यवस्था

चोल प्रशासन में भाग लेने वाले उच्च पदाधिकारियों को पेरुन्दरम कहा जाता था व निम्न श्रेणी के पदाधिकारियों को शेरुन्दरम कहा जाता था. लेखों में कुछ अधिकारीयों को उडनकुटम कहा गया है, जिसका अर्थ है सदा राजा के पास रहने वाला अधिकारी.

सम्पूर्ण चोल साम्राज्य 6 मंडलों में विभाजित था. मंडल कोट्टम में, कोट्टम नाडू में, और नाडू कुर्रमों में विभाजित था. नाडू की स्थानीय सभा को नाटुर तथा नगर की स्थानीय सभा को नगरतार कहा जाता था.

यह भी देखे :- चोल राजवंश | Chola Dynasty

बल्लाल जाति के धनी किसानों को सरकार की देख-रेख में नाडू के काम-काज में अच्छा-खासा नियंत्रण हासिल था. उनमें से कई धनी भू-स्वामियों को चोल राजाओं के सम्मान के रूप में मुवेदवेलन [तीन राजाओं को अपनी सेवाएँ प्रदान करने वाला वेलन या किसान] अरइयार जैसी उपाधियाँ दी तथा उन्हें केंद्र में महत्वपूर्ण राजकीय पद सौंपे गए है.

चोल साम्राज्य की शासन व्यवस्था
चोल साम्राज्य की शासन व्यवस्था

चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता स्थानीय स्वशासन थी. उर सर्वसाधारण लीगों की समिति थी,जिसका कार्य सार्वजनिक कल्याण के लिए तालाबों व बगीचों के निर्माण हेतु गाँव की भूमि का अधिग्रहण करना था.

सभा या महासभा, यह मूलतः अग्रहरों व ब्राह्मणों बस्तियों की सभाएं थी. इसके सदस्य को पेरुमक्कल कहा जाता था. यह सभा वरियम नाम की समितियों के द्वारा अपने कार्य को संचालित कराती थी. सभा की बैठक गाँव के मंदिर के निकट वृक्ष के नेचे या तलब के किनारे होती थी. व्यापारियों को सभा को नगरम कहा जाता था.

चोल काल में भूमि कर उपज का 1/3 भाग हुआ करता था. गाँव में कार्यसमिति की सदस्यता के लिए मध्यस्थ नामक वेतनभोगी कर्मचारी रखे जाते थे.

ब्राह्मणों को दी गई करमुक्त भूमि को चतुर्वेदी मंगलम एवं दान दी गई भूमि को ब्रह्मदेय कहा जाता था. चोल सेना का सबसे संगठित अंग पदाति सेना था. चोल काल में कालूज सोने के सिक्के थे.

तमिल कवियों में जयंगोंदर प्रसिद्ध कवि था,जो कुलोतुंग प्रथम का राजकवि था. उसकी रचना कलिंगतुपर्णि है. पर्सी ब्राउन ने तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर के विमान को भारतीय वास्तुकला का निष्कर्ष माना है. चोल कालीन नटराज प्रतिमा को चोल कला का सांस्कृतिक सर या निचोड़ कहा जाता है.

चोल कांस्य प्रतिमाएं संसार की सबसे उत्कृष्ट प्रतिमाओं में गिनी जाती है. शैव संत इसानशिव पंडित राजेंद्र प्रथम के गुरु थे. चोल कला का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह कावेरीपट्टनम था. बहुत बड़ा गाँव जो इकाई के रूप में शासित किया जाता था, उसे तनियर कहा जाता था.

यह भी देखे :- पल्लव राजवंश | Pallava dynasty

उत्तरमेरुर शिलालेख, परान्तक प्रथम के शासनकाल से संबंधित है. यह सभा संस्था का विस्तृत वर्णन उपस्थित करता है.

चोलों की राजधानी कालक्रम के अनुसार थी :- उरैयुर, तंजौड़, गंगैकोंड, चोलपुरम एवं कांची. चोल काल में सडकों की देखभाल बगान समिति करती थी. चोल काल में आम वस्तुओं के आदान-प्रदान का आधार धान था.

चोल काल के विशाल व्यापारी समूह निम्न प्रकार के थे :- वलन्जियार, नानादैसी एवं मनिग्रामम. विष्णु के उपासक अलवार तथा शिव के उपासक नयनार कहलाते थे.

यह भी देखे :- हर्षवर्धन का परिचय तथा उसकी शासन व्यवस्था

चोल साम्राज्य की शासन व्यवस्था FAQ

Q 1. चोल प्रशासन में भाग लेने वाले उच्च पदाधिकारियों को क्या कहा जाता था?

Ans चोल प्रशासन में भाग लेने वाले उच्च पदाधिकारियों को पेरुन्दरम कहा जाता था.

Q 2. चोल प्रशासन में भाग लेने वाले निम्न पदाधिकारियों को क्या कहा जाता था?

Ans चोल प्रशासन में भाग लेने वाले निम्न पदाधिकारियों को शेरुन्दरम कहा जाता था.

Q 3. सम्पूर्ण चोल साम्राज्य कितने मंडलों में विभाजित था?

Ans सम्पूर्ण चोल साम्राज्य 6 मंडलों में विभाजित था.

Q 4. नाडू की स्थानीय सभा को क्या कहा जाता था?

Ans नाडू की स्थानीय सभा को नाटुर कहा जाता था.

Q 5. नगर की स्थानीय सभा को क्या कहा जाता था?

Ans नगर की स्थानीय सभा को नगरतार कहा जाता था.

Q 6. चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता क्या थी?

Ans चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता स्थानीय स्वशासन थी.

Q 7. व्यापारियों को सभा को क्या कहा जाता था?

Ans व्यापारियों को सभा को नगरम कहा जाता था.

Q 8. चोल काल में भूमि कर कितना हुआ करता था?

Ans चोल काल में भूमि कर उपज का 1\3 भाग हुआ करता था

Q 9. ब्राह्मणों को दी गई करमुक्त भूमि को क्या कहा जाता था?

Ans ब्राह्मणों को दी गई करमुक्त भूमि को चतुर्वेदी मंगलम कहा जाता था.

Q 10. ब्राह्मणों को दान में दी गई भूमि को क्या कहा जाता था?

Ans ब्राह्मणों को दान दी गई भूमि को ब्रह्मदेय कहा जाता था.

Q 11. चोल सेना का सबसे संगठित अंग कौनसी का सेना था?

Ans चोल सेना का सबसे संगठित अंग पदाति सेना का था.

Q 12. चोल काल में कौनसे सोने के सिक्के थे?

Ans चोल काल में कालूज सोने के सिक्के थे.

Q 13. राजेंद्र प्रथम के गुरु कौन थे?

Ans शैव संत इसानशिव पंडित राजेंद्र प्रथम के गुरु थे.

Q 14. चोल काल में विष्णु के उपासक क्या कहलाते थे?

Ans चोल काल में विष्णु के उपासक अलवार कहलाते थे.

Q 15. चोल काल में शिव के उपासक क्या कहलाते थे?

Ans चोल काल में शिव के उपासक नयनार कहलाते थे.

आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.. यदि आपको हमारा यह आर्टिकल पसन्द आया तो इसे अपने मित्रों, रिश्तेदारों व अन्य लोगों के साथ शेयर करना मत भूलना ताकि वे भी इस आर्टिकल से संबंधित जानकारी को आसानी से समझ सके.

यह भी देखे :- वाकाटक राजवंश | Vakataka Dynasty

Follow on Social Media


केटेगरी वार इतिहास


प्राचीन भारतमध्यकालीन भारत आधुनिक भारत
दिल्ली सल्तनत भारत के राजवंश विश्व इतिहास
विभिन्न धर्मों का इतिहासब्रिटिश कालीन भारतकेन्द्रशासित प्रदेशों का इतिहास

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *