राणा कुंभा | कुंभा महाराणा मोकल एवं सौभाग्यदेवी का ज्येष्ठ पुत्र था जो 1433 ई. में मेवाड़ का शासक बना। उन्हें दानी राजा भोज व कर्ण से बढ़कर बताया गया है
राणा कुंभा
कुंभा महाराणा मोकल एवं सौभाग्यदेवी का ज्येष्ठ पुत्र था जो 1433 ई. में मेवाड़ का शासक बना। कुम्भलगढ़ शिलालेख में उसे ‘धर्म और पवित्रता का अवतार’ तथा दानी राजा भोज व कर्ण से बढ़कर बताया गया है। वह निष्ठावान वैष्णव था और यशस्वी गुप्त सम्राटों के समान स्वयं को ‘परमभागवत्’ कहा करता था। उसने आदिवाराह की उपाधि भी अंगीकार की थी : ‘वसुंधरोधरणादिवराहेण’ (विष्णु के प्राथमिक अवतार वाराह के समान वैदिक व्यवस्था का पुनर्संस्थापक)।
महाराणा की प्रारंभिक कठिनाइयाँ और उनका अन्त: राणा कुंभा के सौतेले काका ‘चाचा’ और ‘मेरा’ इतने शक्त्यान्ध हो गये कि एक समय जब मोकल ने इनसे जंगल में प्रसंगवश किसी वृक्ष का नाम पूछ लिया तो ये इसे ताना समझ गये, क्योंकि इनकी माता खातिन थी। इस अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने मोकल को मार दिया। महाराणा कुंभा ने गुप्त रीति से भीलों को अपनी ओर संगठित किया।
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कुम्भा द्वारा रणमल व राघनदेव के नेतृत्व में भेजी सेना ने विद्रोहियों का दमन किया। मारवाड़ी ख्यातों के अनुसार रणमल राठौड़ ने चाचा और मेरा की हत्या की। कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति के अनुसार चाचा व मेरा की राणा कुंभा ने हत्या की तथा उसके ने बाद चाचा के पुत्र एक्का व महपा पंवार का साहस मेवाड़ में रहने का न हो सका और वे मांडू के सुल्तान की शरण में चले गये।

राठौड़ रणमल के पुत्र जोधा ने अपनी पुत्री शृंगारदेवी का विवाह महाराणा कुम्भा के पुत्र रायमल के साथ कर बैर को समाप्त कर दिया। बूँदी के शासक मेवाड़ के सामन्त थे जिन्हें नियंत्रण में रखा। कुंभा ने पाई पहाड़ी भागों के भीलों को अपनी ओर मिला लिया।
राणा कुंभा का मालवा एवं गुजरात के सुल्तानों के साथ लम्बा संघर्ष चला जिसकी शुरुआत महाराणा क्षेत्रसिंह के समय में हुई थी। रणकपुर के शिलालेख के अनुसार महाराणा कुम्भा ने सारंगपुर, नागौर, गागरोन, नरायना, अजयमेरु, मण्डोर, मांडलगढ़, बूँदी एवं आबू पर अधिकार कर राज्य का विस्तार किया।
राणा के अंतिम दिन
अपने अंतिम दिनों में राणा कुंभा उन्मादी रोग से ग्रसित हो गया था। वह अपना अधिक समय मामादेव : के निकटवर्ती जलाशय पर बिताया करता था। 1468 ई. के एक दिन शाम के समय राणा कुंभा ‘मामादेव तालाब’ पर अकेला बैठा हुआ था।
उसके बड़े पुत्र उदा (उदयकरण) ने राणा की हत्या कर स्वयं को राणा घोषित कर दिया। हरविलास सारदा ने महाराणा की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए लिखा है कि कुम्भा एक महान् शासक, महान् सेनाध्यक्ष, महान् निर्माता और वरिष्ठ विद्वान थे।
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राणा कुम्भा द्वारा ग्रहण की गई उपाधियां
उस समय के साहित्यक ग्रन्थों-गीतगोविन्द टीका और प्रशस्तियों जैसे-कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में महाराणा को महाराजाधिराज, रावराय, राणेराय, चापगुरु, राय रायन, राणो रासो (साहित्यकारों का आश्रयदाता), राजगुरु (राजनीतिक सिद्धान्तों में दक्षता), दानगुरु (महादानी), हालंगुरु (पहाड़ी दुर्गों का स्वामी), परमगुरु (समय का सर्वोच्च शासक), छापगुरु (छापामार में पारगंत), नरपति, अश्वपति, गजपति (विशाल सेना का स्वामी) आदि उपाधियां प्रदान की।
राणा कुंभा राजपूताना के सभी शासकों में सर्वोपरि है इसलिए उसे ‘हिन्दू सुरताण’ तथा संगीत प्रेमी होने के कारण ‘अभिनव भारताचार्य’ व ‘वीणावादन प्रवीणेन’ कहा जाता है।
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राणा कुंभा FAQ
Ans – कुंभा महाराणा मोकल एवं सौभाग्यदेवी का ज्येष्ठ पुत्र था.
Ans – कुंभा का राज्यभिषेक 1433 ई. में हुआ था.
Ans – कुम्भलगढ़ शिलालेख में कुंभा को ‘धर्म और पवित्रता का अवतार’ तथा दानी राजा भोज व कर्ण से बढ़कर बताया गया है.
Ans – राणा कुंभा अपने अंतिम समय में उन्मादी रोग से ग्रसित हो गए थे.
Ans – राणा कुंभा की हत्या उसके बड़े पुत्र उदा (उदयकरण) ने की थी.
Ans – राणा कुंभा के संगीत प्रेमी होने के कारण उन्हें ‘अभिनव भारताचार्य’ व ‘वीणावादन प्रवीणेन’ कहा जाता है.
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