राजा भोज | धारानगरी का राजा भोज न केवल राजस्थान के इतिहास में वरन् भारत के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध शासक हुआ। यह सिंधुराज का पुत्र था
राजा भोज
धारानगरी का राजा भोज न केवल राजस्थान के इतिहास में वरन् भारत के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध शासक हुआ। यह सिंधुराज का पुत्र था। यह युद्ध एवं साहित्य दोनों क्षेत्रों में मध्ययुग में अग्रणी शासक था। उसने धारानगरी में ‘सरस्वती कण्ठाभरण’ नामक पाठशाला बनवायी जिसे भोजशाला भी कहा जाता था। उसने इसमें वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की जिसे भारतीय ‘सरस्वती देवी’ की प्रतिमा के रूप में स्वीकार किया गया है, जो ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रतीक चिह्न है।
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उसके द्वारा बनवाई गई एक संस्कृत पाठशाला जालौर में भी मिलती है। भोज ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण का मंदिर बनवाया। उसने उज्जैन की जगह ‘धारानगरी’ को राजधानी बनाया।
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अपने नाम से ‘भोजपुर नगर’ बसाया था एवं एक बहुत बड़े ‘भोजसर तालाब’ का निर्माण करवाया। उसने केदारेश्वर, रामेश्वर, सोमनाथ, सुडौर आदि अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।
भोज अपनी विद्वता के कारण ‘कविराज’ उपाधि से प्रख्यात था। अबुल फजल (आइन-ए-अकबरी) के अनुसार भोज की राजसभा में 500 विद्वान रहते थे। राजा भोज ने समरांगण सूत्रधार, सरस्वती कंठाभरण, सिद्धान्त समूह, राजमर्तण्ड, योगसूत्रवृत्ति, विद्याविनोद, युक्ति-कल्पतरु, आदित्यप्रताप सिद्धान्त, आयुर्वेद सर्वस्व आदि ग्रंथों की रचना की। उसकी राजसभा में मेरुतुंग, बल्लल, वररुचि, सुबंधु, अमर, राजशेखर, माघ, धनपाल, मानतुंग आदि अनेक विद्वान रहते थे। भोज की मृत्यु पर पण्डितों को महान् दुःख हुआ। उसकी मृत्यु पर यह कहावत प्रचलित हो गयी कि ‘अद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती’ अर्थात् धारा नगरी में विद्या और विद्वान दोनों निराश्रित हो गए।
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राजा भोज FAQ
Ans – महाराजा भोज के पिताजी का नाम सिन्धराज था.
Ans – महाराजा भोज ने धारानगरी में ‘सरस्वती कण्ठाभरण’ नामक पाठशाला बनवायी जिसे भोजशाला कहा जाता है.
Ans – भारतीय ‘सरस्वती देवी’ की प्रतिमा के रूप में स्वीकार की गई प्रतिमा महाराजा भोज द्वारा बनवाई गई थी.
Ans – भोजपुर नामक नगर महाराजा भोज ने बसाया था.
Ans – भोज अपनी विद्वता के कारण ‘कविराज’ उपाधि से प्रख्यात था.
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