पृथ्वीराज चौहान (पृथ्वीराज तृतीय) | पृथ्वीराज महाराज सोमेश्वर व रानी कर्पूरादेवी के पुत्र थे. इनका जन्म 1223 ई. को हुआ था. वे अजमेर के चौहान वंश के अंतिम प्रतापी शासक थे
पृथ्वीराज चौहान
सोमेश्वर की रानी ‘किरपादेवी’ होने का उल्लेख शिलालेखों में है, जिसको सुर्जन चरित्र में ‘कर्पूरादेवी’ लिखा है, और उससे पृथ्वीराज व माणकराज ये दो पुत्र हुए थे। सिरोही के बहुआ की पुस्तक बही में सोमेश्वर की राणी प्राणकुंवर” दिल्ली के तंवर अनंगपाल की पुत्री का उल्लेख हैं जिससे पृथ्वीराज का जन्म हुआ। ‘टॉड राजस्थान’ और पृथ्वीराज रासो के अनुसार चौहान पृथ्वीराज का जन्म दिल्लीपति अनंगपाल की कनिष्ठा कन्या ‘कमलावती के गर्भ से हुआ था।
अजमेर के चौहान वंश का अंतिम प्रतापी शासक पृथ्वीराज तृतीय हुआ, जिसका जन्म संवत् 1223 (1166 ई.) में गुजरात की तत्कालीन राजधानी अन्हिलपाटन में हुआ था। इसने 1177 ई. के लगभग अपने पिता सोमेश्वर की मृत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की आयु में अजमेर का सिंहासन प्राप्त किया। इसकी माता कर्पूरदेवी ने बड़ी कुशलता से प्रारंभ में इसके राज्य को संभाला। मुख्यमंत्री कदम्बवास (कैमास) अत्यधिक वीर, विद्वान व स्वामीभक्त था तथा सेनाध्यक्ष भुवनैकमल्ल कर्पूरदेवी का संबंधी था। कपूरदेवी का संरक्षण का समय संभवत एक वर्ष से अधिक न रह सका तथा ई.स. 1178 में पृथ्वीराज ने सभी कार्यों को अपने हाथ में ले लिया।
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संभवतः कदम्बवास की शक्ति को अपने पूर्ण अधिकार से काम करने में बाधक समझ कर उसने कुछ अन्य विश्वस्त अधिकारियों की नियुक्ति की जिसमें ‘प्रतापसिंह’ विशेष उल्लेखनीय है। रासो के लेखक ने कदम्बवास की हत्या पृथ्वीराज द्वारा होना लिखा है। पृथ्वीराज ने प्रारंभिक वर्षों में अपने विरोधियों यथा चाचा अपरगांग्य, अपने चचेरे भाई नागार्जुन व मथुरा, भरतपुर तथा अलवर क्षेत्र के भण्डानकों का दमन किया। अमरगाडय के अतिरिक्त विग्रहराज चतुर्थ के नागार्जुन नाम का एक और पुत्र था। उसने गुडपुर (गुड़गांव) के दुर्ग को युद्ध के लिये सजाया हो। पृथ्वीराज ने भादानकों को हराया। ही नहीं, उसने उनके राज्य की समाप्ति ही कर डाली। उससे उसका राज्य दिल्ली से अजमेर तक एक हो गया।
1182 ई. के आसपास पृथ्वीराज ने महोबा के चन्देलों (परमार्दिदेव) को हराकर वहाँ अपना अधिकार किया। ‘आल्हा और उदल’ महोबा के चन्देल शासक ‘परमार्दिदेव’ के दो वीर सेनानायक थे जो अपने शासक से रूठकर पड़ौसी राज्य में चले गये थे। जब 1182 ई. में पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण किया तो परमार्दिदेव ने अपने दोनों वीर सेनानायकों के पास यह संदेश भिजवाया। कि तुम्हारी मातृभूमि पर पृथ्वीराज चौहान ने आक्रमण कर दिया है।
दोनों परमवीर सेनानायक पृथ्वीराज के विरुद्ध युद्ध में वीरता से लड़ते हुए अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुए तथा अपनी वीरता, शौर्य एवं बलिदान के कारण इतिहास में अमर हो गए। इनके शौर्य गीत “जब तक आल्हा उदल है तुम्हें कौन पड़ी परवाह” आज भी जनमानस को उद्वेलित करते हैं। विजयी पृथ्वीराज पंजुनराय को महोबा का उत्तराधिकारी नियुक्त कर लौट आया।
चालुक्यों पर विजय :
गुजरात के चालुक्यों और अजमेर के चौहानों के बीच दीर्घकाल से संघर्ष चला आ रहा था। किन्तु सोमेश्वर के शासनकाल में दोनों के मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। पृथ्वीराज तृतीय के समय यह संघर्ष पुनः चालू हो गया। पृथ्वीराज रासो के अनुसार संघर्ष का कारण यह था कि पृथ्वीराज तृतीय तथा चालुक्य नरेश भीमदेव द्वितीय दोनों आबू के शासक सलख की पुत्री इच्छिनी से विवाह करना चाहते थे। पृथ्वीराज रासो में संघर्ष का दूसरा कारण यह बताया है कि पृथ्वीराज तृतीय के चाचा कान्हा ने भीमदेव द्वितीय के सात चचेरे भाइयों को मार दिया था, इसलिए भीमदेव ने अजमेर पर आक्रमण कर नागौर पर अधिकार कर लिया तथा सोमेश्वर को मार डाला।
युद्ध का वास्तविक कारण यह था कि चालुक्यों का राज्य नाडौल तथा आबू तक फैला हुआ था और पृथ्वीराज तृतीय के राज्य की सीमाएं नाडौल व आबू को स्पर्श कर रही थी। अतः दोनों में संघर्ष होना स्वाभाविक था। 1184 ई. में दोनों पक्षों के बीच घमासान किन्तु अनिर्णायक युद्ध हुआ और अन्त में 1187 ई. के आस-पास चालुक्यों के महामंत्री जगदेव प्रतिहार के प्रयासों से दोनों में एक अस्थायी सधि हो गयी।
पृथ्वीराज चौहान-गहड़वाल वैमनस्य :
दिल्ली को लेकर चौहानों में और गहड़वालों में वैमनस्य एक स्वाभाविक घटना बन गयी थी। इसी प्रश्न को लेकर विग्रहराज चतुर्थ और विजयचन्द्र गहड़वाल में युद्ध हुआ था जिसमें विजयचन्द्र को पराजित होना पड़ा था। पृथ्वीराज की दिग्विजय की नीति एवं दिल्ली मुद्दे ने पृथ्वीराज चौहान एवं जयचन्द्र गहड़वाल के मध्य वैमनस्य अत्यधिक बढ़ा दिया। दोनों ही महत्त्वाकांक्षी शासक थे। इस द्वैषता में पृथ्वीराज चौहान द्वारा जयचन्द्र गहड़वाल की पुत्री संयोगिता के हरण ने और वृद्धि की।
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संयोगिता :
पृथ्वीराजरासो के अनुसार संयोगिता जयचन्द्र गहड़वाल की पुत्री थी। पृथ्वीराज और संयोगिता में प्रेम था जिसकी अवहेलना जयचन्द्र ने की। जयचन्द्र ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया जिसके साथ-साथ संयोगिता का स्वयंवर भी रचा गया। परन्तु पृथ्वीराज को उसमें नहीं बुलाया गया। उसने पृथ्वीराज को अधिक अपमानित करने के लिए उसकी लोहे की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर खड़ी कर दी। जब स्वयंवर का समय आया तो राजकुमारी ने अपने प्रेमी पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में वरमाला डाल दी। चौहान राजा भी अपने सैन्य बल के साथ घटनास्थल पर पहुँच गया और युक्ति से संयोगिता को उठाकर चल पड़ा। संयोगिता को अजमेर ले जाकर उसके साथ विवाह कर लिया।
संयोगिता की ऐतिहासिकता :
डॉ. त्रिपाठी, विश्वेश्वरनाथ रेऊ तथा डॉ. ओझा संदेह प्रकट करते हैं और प्रमाणित करने का प्रयत्न करते हैं कि यह सम्पूर्ण कथा काल्पनिक है। डा. दशरथ शर्मा (अर्ली चौहान डायनेस्टी), सी.वी. वैद्य ने संयोगिता के अपहरण को घटना को ऐतिहासिक माना है। इसी प्रकार राष्ट्रकूट शासक इन्द्र जो चालुक्यों का सामन्त था, मण्डप से चालुक्य राजकुमारी भगवान को बलात् ले गया था। चन्द्रशेखर तथा अबुल फजल आदि लेखकों ने संयोगिता की कथा को मान्यता दी। पृथ्वीराज विजय ने भी पृथ्वीराज को तिलोचना नामक अप्सरा के, जो राजकुमारी के रूप में अवतरित हुई, प्राप्त होने का संकेत है।
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पृथ्वीराज चौहान FAQ
Ans – पृथ्वीराज महाराज सोमेश्वर व रानी कर्पूरादेवी के पुत्र थे.
Ans – अजमेर के चौहान वंश का अंतिम प्रतापी शासक पृथ्वीराज तृतीय हुआ था.
Ans – पृथ्वीराज तृतीय का जन्म 1166 ई. में हुआ था.
Ans – पृथ्वीराज तृतीय का जन्म गुजरात की तत्कालीन राजधानी अन्हिलपाटन में हुआ था.
Ans – पृथ्वीराज तृतीय का राज्याभिषेक 1177 ई. में हुआ था.
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