मालवा का परमार राजवंश | मालवा के परमारों का मूल निवास आबू ही था। इनकी राजधानी उज्जैन या ‘धारा नगरी’ थी। इनके प्रारंभिक शासकों में उपेन्द्र, वैरिसिंह प्रथम, सियक प्रथम आदि का नाम मिलता है
मालवा का परमार राजवंश
मालवा के परमारों का मूल निवास आबू ही था। इनकी राजधानी उज्जैन या ‘धारा नगरी’ थी। इनके प्रारंभिक शासकों में उपेन्द्र, वैरिसिंह प्रथम, सियक प्रथम आदि का नाम मिलता है। संभवतः ये राष्ट्रकूटों के सामंत थे। मेरुतुंग की ‘प्रबंध चिंतामणि’ तथा पद्मगुप्त के ‘नवसाहसांक चरित’ के अनुसार परमार शासक सियक द्वितीय के कोई पुत्र नहीं था। मुंज परमार उसका दत्तक पुत्र था।
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मुंज परमार
मालवा के परमारों में मुंज परमार बड़ा प्रतापी शासक हुआ। इसने हूणों को परास्त किया। इसे ‘वाक्पति राज’ तथा ‘उत्पलराज’ नामों से भी जाना जाता है। उसने अमोघवर्ष, पृथ्वीवल्लभ तथा श्रीवल्लभ की उपाधियां धारण की। उसने कल्याणी के चालुक्य नरेश तैलप द्वितीय को छः बार परास्त किया।
वह कवियों तथा विद्वानों का आश्रयदाता था। उसने ‘कवि वृष’ को उपाधि धारण की। उसकी राजसभा में अभियान रत्नमाला का लेखक हलायुध, नवसाहसांकचरित का लेखक पद्मगुप्त, दशरूपक का लेखक धनंजय, यशोरूपावलोक का रचयिता धनिक जैसे प्रसिद्ध विद्वान रहते थे।
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राजा भोज
धारानगरी का राजा भोज न केवल राजस्थान के इतिहास में वरन् भारत के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध शासक हुआ। यह सिंधुराज का पुत्र था। यह युद्ध एवं साहित्य दोनों क्षेत्रों में मध्ययुग में अग्रणी शासक था। उसने धारानगरी में ‘सरस्वती कण्ठाभरण’ नामक पाठशाला बनवायी जिसे भोजशाला भी कहा जाता था। उसने इसमें वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की जिसे भारतीय ‘सरस्वती देवी’ की प्रतिमा के रूप में स्वीकार किया गया है, जो ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रतीक चिह्न है।
उसके द्वारा बनवाई गई एक संस्कृत पाठशाला जालौर में भी मिलती है। भोज ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण का मंदिर बनवाया। उसने उज्जैन की जगह ‘धारानगरी’ को राजधानी बनाया। अपने नाम से ‘भोजपुर नगर’ बसाया था एवं एक बहुत बड़े ‘भोजसर तालाब’ का निर्माण करवाया। उसने केदारेश्वर, रामेश्वर, सोमनाथ, सुडौर आदि अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।
भोज अपनी विद्वता के कारण ‘कविराज’ उपाधि से प्रख्यात था। अबुल फजल (आइन-ए-अकबरी) के अनुसार भोज की राजसभा में 500 विद्वान रहते थे। राजा भोज ने समरांगण सूत्रधार, सरस्वती कंठाभरण, सिद्धान्त समूह, राजमर्तण्ड, योगसूत्रवृत्ति, विद्याविनोद, युक्ति-कल्पतरु, आदित्यप्रताप सिद्धान्त, आयुर्वेद सर्वस्व आदि ग्रंथों की रचना की। उसकी राजसभा में मेरुतुंग, बल्लल, वररुचि, सुबंधु, अमर, राजशेखर, माघ, धनपाल, मानतुंग आदि अनेक विद्वान रहते थे। भोज की मृत्यु पर पण्डितों को महान् दुःख हुआ। उसकी मृत्यु पर यह कहावत प्रचलित हो गयी कि ‘अद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती’ अर्थात् धारा नगरी में विद्या और विद्वान दोनों निराश्रित हो गए।
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मालवा का परमार राजवंश FAQ
Ans – मालवा के परमारों का मूल निवास आबू था.
Ans – मालवा के परमारों की राजधानी उज्जैन या ‘धारा नगरी’ थी.
Ans – मुंज परमार को ‘वाक्पति राज’ तथा ‘उत्पलराज’ नामों से भी जाना जाता है.
Ans – मुंज परमार को ‘कवी वृष’ नामक उपाधि से सम्मानित किया गया था.
Ans – अबुल फजल (आइन-ए-अकबरी) के अनुसार भोज की राजसभा में 500 विद्वान रहते थे.
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