मध्यकालीन जागीर के प्रकार | मध्यकाल में मुगलों ने जागीर अर्थात सामंतों को कई भागों में बाँट रखा था. समान्त विभिन्न तरीकों से जनता से कर वसूलते थे
मध्यकालीन जागीर के प्रकार
मध्यकालीन जागीर के प्रकार | मध्यकाल में मुगलों ने जागीर अर्थात सामंतों को कई भागों में बाँट रखा था. समान्त विभिन्न तरीकों से जनता से कर वसूलते थे. जो की यहाँ दी जा रहे है –
ग्रासिए एवं भौमिए’ :
राज्य की सामन्त व्यवस्था में ‘ग्रासिए’ और ‘भोमियों’ का भी महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। ‘ग्रासिए’ वे जागीरदार थे जो सैनिक सेवा के उपलक्ष्य में शासक के द्वारा दी गई भूमि की उपज का, जो ‘ग्रास’ कहलाती थी, उपयोग करते थे। ऐसी भूमि सेवा में ढिलाई करने पर वापस ले ली जाती थी। ‘भौमिए’ वे राजपूत होते थे, जिन्होंने सीमान्त रक्षा के लिए या गांव की हिफाजत या राजकीय सेवाओं के लिए अपना बलिदान किया था। इनको भूमि से वेदखल नहीं किया जा सकता था।
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तनखा जागीर
तनखा जागीर निश्चित सैनिकों के साथ सैनिक सेवा करने की शर्त पर जीवनकाल के लिए दी जाती थी। औरस पुत्र के अलावा प्राप्तकर्त्ता के वंश में उपयुक्त उत्तराधिकारी के अभाव में इनाम व पुण्य में दिए गए अनुदान व जागीरें भी खालसा में ले जी जाती थी। प्रशासन के दृष्टिकोण से जागीरें परगना प्रशासन के अधिकार क्षेत्र में आती थी।
भोम जागीर
छोटे भूमि खण्ड, जो पुश्तैनी तौर पर नाममात्र के भाड़े पर (भोम-बराड़) दिए जाते थे, भोम कहलाते थे। भोम राज्य की सेवा करने अथवा प्राप्तकर्ता के पूर्वजों द्वारा की गई सेवा के उपलक्ष्य में दी जाती थी। भूमिया व उसके वंशज भोम के राजस्व के हकदार थे। कई बार भीम के साथ कुछ विशेषाधिकार भी दे दिए जाते थे। युद्ध के समय थोमिए सहर्ष अपनी सेवा अर्पित करते थे। भौमियां गांव में स्थानीय मिलीशिया की भांति होते थे।
पुण्य ऊदक एवं भोग जागीर
पुण्य ऊदक व भोग पुण्य स्वरूप ब्राह्मणों, मंदिरों, पुजारियों तथा महन्तों को दी जाती थी। ये एक प्रकार से भूमि राजस्व का अनुदान ही होता था। यह भूमि चिरकाल तक दी जाती थी। भूमिग्राही को प्राप्त राजस्व में से राज्य को कुछ भी नहीं देना पड़ता था। इस भूमि में रैयत के अधिकार पूर्ववत बने रहते थे।
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अलूफाती जागीर
अलूफाती जागीर राज परिवार की स्त्रियों को जीवनकाल में उनके व्यय के लिए दी जाती थी।
इनाम जागीर
इनाम जागीरे पंड़ितों, विद्वानों, पुरोहितों, कवियों आदि को दी जाती थी।
सांसण
ऐसी जागीर जो राजा द्वारा ब्राह्मण व चारण को अनुदान के रूप में दी जाती थी।
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मध्यकालीन जागीर के प्रकार FAQ
Ans – ‘ग्रासिए’ वे जागीरदार थे जो सैनिक सेवा के उपलक्ष्य में शासक के द्वारा दी गई भूमि की उपज का, जो ‘ग्रास’ कहलाती थी, उपयोग करते थे.
Ans – ‘भौमिए’ वे राजपूत होते थे, जिन्होंने सीमान्त रक्षा के लिए या गांव की हिफाजत या राजकीय सेवाओं के लिए अपना बलिदान किया था.
Ans – छोटे भूमि खण्ड, जो पुश्तैनी तौर पर नाममात्र के भाड़े पर (भोम-बराड़) दिए जाते थे, भोम जागीर कहलाते थे.
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