महाराजा रतनसिंह | महाराजा सूरतसिंह का निधन 1828 में हुआ। इनके पश्चात् इनका जेष्ठपुत्र रतनसिंह 1829 ई. में बीकानेर की गद्दी पर बैठा
महाराजा रतनसिंह
महाराजा सूरतसिंह का निधन 1828 में हुआ। इनके पश्चात् इनका जेष्ठपुत्र रतनसिंह 1829 ई. में बीकानेर की गद्दी पर बैठा। इसके समय जैसलमेर-बीकानेर तथा बीकानेर, जोधपुर और जयपुर की सीमा संबंधी समस्याएं उत्पन्न हुई जिसे कंपनी की ओर से सर जार्ज क्लार्क ने सुलझा कर शांत किया।
सन् 1831 में बादशाह अकबर द्वितीय ने महाराजा रतनसिंह को ‘नरेन्द्रशिरोमणि’ का खिताब ‘माही-मरातिब’ नक्कारा, ढाल-तलवार और खिलअत भेजी। राज्य में पुनः जागीरदारों ने सिर उठाना आरंभ किया। अतः कंपनी सरकार ने झुंझुनूं में एक मातहती सेना का गठन बीकानेर के खर्चे पर किया। बीकानेर और जैसलमेर की सरहदी का हदबंदी मिस्टर ट्रिपोलियन द्वारा कर दी गई।
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महाराजा ई.स. 18 नवम्बर, 1836 को छः हजार साथियों एंव जनाने सहित गया यात्रा के लिए प्रस्थान किया। इस अवसर पर उसके साथ एक अंग्रेज अफसर भी रहा। मथुरा, वृन्दावन, प्रयाग तथा काशी की यात्रा करता हुआ पौष सुदि 14 (ई.स. 20 जनवरी, 1837) dks महाराजा गया पहुंचा।

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वहां रहते समय उसने अपने सरदारों से पुत्रियों को न मारने की प्रतिज्ञा कराई। फिर तीर्थ स्थनों में होता हुआ बीकानेर लौटा, जहां उसने अपने सरदारों को गया में की हुई प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाया और कहा कि उसके विरुद्ध आचरण करने वाले सरदार का ठिकाना राज्य की तरफ से जब्त कर लिया जायेगा।
जब कम्पनी ने काबुल अभियान किया तो महाराजा रतनसिंह ने सन् 1842 में दिल्ली जाकर काबुल के लड़ाई के लिए 200 ऊंट के सहायता स्वरूप नजर किए। गवर्नर जनरल ने इसके लिए महाराजा को धन्यवाद दिया। दिल्ली से आकर महाराजा ने राजशासन में सरकार (कंपनी) की सलाह से सुधार किए।
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महाराजा रतनसिंह FAQ
Ans – सूरतसिंह का निधन 1828 में हुआ था.
Ans – सूरतसिंह के निधन के बाद बीकानेर की गद्दी पर उनका बड़ा बेटा रतन सिंह बैठा था.
Ans – रतन सिंह बीकानेर की गद्दी पर 1829 ई. में बैठा था.
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