महाराजा भीमसिंह | महाराजा भीम सिंह का राजतिलक 20 जुलाई, 1793 को किया गया था. इनके उत्तराधिकारी का नाम मान सिंह है. 19 अक्टूबर, 1803 को इनका देहांत गया था
महाराजा भीमसिंह
20 जुलाई, 1793 को भीमसिंह ने सिंहासनासीन होने के पश्चात् सिंघवी बनराज को मेड़ता भेजा उसने वहां पहुंचकर समुचित प्रबंध किया। भीमसिंह को अपने भाइयों की तरफ से सदैव खटका बना रहता था, अतएवं उसने अवसर प्राप्त होते ही शेरसिंह एवं सावंतसिंह तथा उसके पुत्र सूरसिंह को मरवा डाला और इस प्रकार निरपराध व्यक्तियों की हिंसा का पाप उठाकर उसने अपना मार्ग निष्कंटक किया। 1
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चचेरा भाई मानसिंह जालौर में रहकर अपने को स्वतंत्र राजा मानता था। ई.सं. 1797 में महाराजा ने फौज देकर बख्शी सिंघवी अखैराज को जालौर पर भेजा। जालौर पर घेरा पड़ा हुआ था, उन्हीं दिनों महाराजा को अदीठ की बीमारी हुई और उसी से 19 अक्टूबर, 1803 को उसका देहांत हो गया।

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महाराजा के उस समय कोई संतान न होने से उस समय गढ़ में उपस्थित कार्यकर्ताओं ने तत्काल राजकीय कोठारों में मोहर लगा दी।
महाराजा भीमसिंह के वर्णन का बीस सर्गों का “भीमप्रबंध” नाम का एक संस्कृत काव्य मिला है जिसका महाराजा भीमसिंह की आज्ञा से भट्ट हरिवंश ने बनाया था।
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महाराजा भीमसिंह FAQ
Ans – महाराजा भीम सिंह का राजतिलक 20 जुलाई, 1793 को किया गया था.
Ans – भीम सिंह के उत्तराधिकारी का नाम मान सिंह था.
Ans – भीम सिंह का देहांत 19 अक्टूबर, 1803 को हुआ था.
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