मध्यकालीन राजस्थान का जन जीवन | मध्यकाल में राजस्थान के निवासी गांवों और शहरों में रहा करते थे और शहर मैदानी भू-भाग की अपेक्षा टीले पर अथवा नदी के किनारे बसे हुए होते थे
मध्यकालीन राजस्थान का जन जीवन
मध्यकाल में राजस्थान के निवासी गांवों और शहरों में रहा करते थे और शहर मैदानी भू-भाग की अपेक्षा टीले पर अथवा नदी के किनारे बसे हुए होते थे। गांव में कच्ची मिट्टी को बनी हुई झापड़ियां होती थी खाते-पीते व्यक्तियों के मकान एक या दो कमरों के होते थे जिनके सामने बरामदा भी होता था। इस प्रकार के मकानों पर पक्की छ होती थी और एक आंगन होता था जिनके बड़े दरवाजे में भरी हुई गाड़ी भी आ सकती थी। आंगन में आने-जाने का मार्ग कमरों से जुड़ा हुआ होता था।
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भूतपूर्व जोधपुर राज्य के दफ्तरी रिकार्ड में हवाला’ बहियाँ भी भी इन हवाला बहियों को पढ़ने से पता चलता है रहने वाले कृषकों के पास पहनने के लिए एक या हो अतिरिक्त वस्त्र होते थे। उनकी स्त्रियां गले में नेकलेस, बाजूबंद और पैरों में पायल पहनती थी जो चादी की बनी होती थी। इनके घरों में पीतल के बर्तन काम में लिये थे लोग आपस थे और गुददी ओढ़ते से जो फटे हुए कपड़ों से तैयार की जाती थी। सोने के लिए चारपाई का प्रयोग अवश्य करते थे खाते-पीते लोगों के पास भिन्न-भिन्न किस्म की अतिरिक्त वस्तुएं हो सकती थी, लेकिन सबका मूल आधार एक ही होता था।
भारत के अन्य लोगों के समान मध्ययुगीन राजस्थान में भी संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी। परिवार में परम्परा पर विशेष बल दिया जाता था। परिवार पितृसतात्मक थे। स्वाभाविक रूप से संस्कारों पर विशेष बल दिया जाता था। उपनयन संस्कार इत्यादि सभी विधिवतु किये जाते थे। विवाह में उस समय भी बहुत खर्च किया जाता था नेग प्रथा आधुनिक दहेज प्रथा के समान ही थी, लेकिन यह प्रथा भी इतनी कष्टप्रद भो कि निर्धन मां-बाप अपनी पुत्री का विवाह सम्मापूर्वक सम्पन्न नहीं कर सकते थे।
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मध्यकालीन राजस्थान में अंतर्जातीय विवाह भी प्रचलित थे। कभी-कभी विधर्मी विवाह भी सम्पन्न होते थे, लेकिन इन विवाहों के संबंध में समकालीन स्रोतों में जो जानकारी उपलब्ध है वह इतनी सीमित है कि उसके आधार पर केवल इतना ही कहा जा सकता है कि उच्च कुल के लोगों में ही इस प्रकार की विवाह पद्धति का प्रचलन था। उच्च कुलों में बहुपत्नी प्रथा भी प्रचलित थी। बहुपत्नी प्रथा के कारण षड्यंत्र और गृहकलह होती थी। विधवा की स्थिति समाज में शोचनीय थी, यद्यपि कतिपय राजा-महाराजाओं ने बाल-विधवा की दयनीय स्थिति को सुधारने के लिए प्रयत्न किये थे। इसी प्रकार तलाक की प्रथा भी अज्ञात नहीं थी। लेकिन तलाक साधारण बात नहीं थीं यह केवल निम्न जातियों में ही प्रचलित था, उच्चकुल में तलाक उसी समय सम्भव था जब एक विवाहित स्त्री किसी दूसरे पुरुष से शारीरिक संबंध बना ले। सती, जौहर इत्यादि का दम्भ भरने वाली राजस्थान की नारी व्यभिचारिणी भी हो सकती थी, यह आश्चर्यजनक तथ्य है।
राजस्थान में मनोरंजन के कई साधन उपलब्ध थे। राजदरबारों में वेश्याएं मनोरंजन करती थी। वे चौपड़, शतरंज और ताश के द्वारा भी मनोरंजन करते थे, लेकिन वीरोचित मनोरंजन का साधन कुश्ती, मुक्केबाजी (Boxing) और जानवरों की लड़ाई थी। शिकार साधन-सम्पन्न लोगों का मनोरंजन था। लेकिन तैरना, नौका-विहार और झुला झूलना जन-साधारण को भी उपलब्ध थे। यदाकदा सपेरे और नट भी लोगों का मनोरंजन करते थे। भांड स्वांग धारण करके आधुनिक काल के सिनेमाघरों और नाटकघरों की तरह लोगों का मनोरंजन करते थे।
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मध्यकालीन राजस्थान का जन जीवन FAQ
Ans – मध्ययुगीन राजस्थान में भी संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी.
Ans – मध्यकाल में परिवार पितृसतात्मक थे.
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