कान्हड़देव चौहान | कान्हडदेव जालौर के चौहानों में सबसे प्रतापी शासक था. 1305 ई. को कान्हड़ देव का राज्याभिषेक किया गया था. इन्हीं के शासनकाल में जालौर में जौहर हुआ था
कान्हड़देव चौहान
कान्हड़दे और खिलजी विरोध के कारण :
कान्हड़दे प्रबंध में वर्णित है कि जब अलाउद्दीन खिलजी ने 1298 ई. में गुजरात विजय के लिए अभियान किया तो मार्ग में जालौर पड़ता था। उसने कान्हड़दे को कहलवा भेजा कि शाही सेना को अपनी सीमा से गुजरने दिया जाए परन्तु कान्हड़दे ने मना कर दिया। परन्तु उस समय खिलजी सेना, जिसका नेतृत्व उलुगखों और नुसरतखों कर रहे थे पर राजपूत सेना ने हमला बोल दिया। उलुगखों को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।
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तारीख-ए-फरिश्ता : इस अभियान में 1305 ई. में एन-उल-मुल्क मुल्तानी के नेतृत्व में एक सेना भेजी गयी। इस बार सेनानायक सम्भवतः कान्हड़दे को गौरवपूर्ण सन्धि का आश्वासन दिलाकर उसे दिल्ली ले गया। कान्हड़दे ने अपनी स्थिति खिलजी दरबार में असम्मानित सी पायी। वह वहाँ से निकलकर लौट जाना चाहता था कि एक दिन सुल्तान ने इस बात पर दर्प-सा प्रकट किया कि कोई हिन्दू शासक उसकी शक्ति के समक्ष टिक नहीं सका। ये शब्द कान्हड़दे को चुभ गये और वह सुल्तान को अपने विरुद्ध लड़ने की चुनौती देकर जालौर लौट गया और युद्ध की तैयारी करने लगा।
नैणसी लिखता है कि जब कान्हड़दे का पुत्र वीरम अलाउद्दीन के दरबार में सेवा के उपलक्ष में रहता था तो हरम की एक राजकुमारी फिरोजा उससे प्रेम करने लगी। वीरम को उससे विवाह करने के लिए बाध्य किया गया। राजकुमार तुर्क कन्या से विवाह करना अधार्मिक समझ चुपके से जालौर लौट आया। इस मानहानि से क्षुब्ध होकर सुल्तान ने जालौर पर धावा बोल दिया।
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कान्हड़दे प्रबन्ध में इसके उपरान्त यह भी मिलता है कि जब सुल्तान को जालौर पर आक्रमण करने में कोई सफलता न मिली तो कुमारी फिरोजा स्वयं गढ़ में गयी जहाँ कान्हड़दे ने उसका स्वागत किया, परन्तु पुत्र से उसका विवाह करने से इन्कार कर दिया। हताश होकर राजकुमारी दिल्ली लौट गयी। कुछ वर्षों के उपरान्त अलाउद्दीन ने फिरोजा की एक धाय गुलबिहिश्त को आक्रमण के लिए भेजा। उसे यह कहा गया कि वीरम बन्दी हो जाए तो जीवित लाया जाए यदि धराशायी हो तो उसका सिर लाया जाए। जब राजपूत सेना घाय के आक्रमण से हार गयी और वीरम वीरगति को प्राप्त हुआ तो उसका सिर दिल्ली ले जाया गया और राजकुमारी को दिया गया। राजकुमारी उसके साथ सती होने को तैयार हुई। अन्त में उसका दाह संस्कार कर वह यमुना में कूदकर मर गयी।
डॉ. शर्मा के अनुसार उत्तरी भारत के अन्य दुर्गों को जिनमें चित्तौड़, रणथम्भौर आदि प्रमुख थे, सैनिक अड्डे बनाये रखने लिए जालौर की स्वतन्त्रता को समाप्त करने की सुल्तान की दृढ़ता अन्तिम आक्रमण का कारण माना जाना चाहिए।
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कान्हड़देव चौहान FAQ
Ans – अलाउद्दीन खिलजी ने 1298 ई. में गुजरात विजय के लिए अभियान किया था.
Ans – एन-उल-मुल्क मुल्तानी के नेतृत्व में 1305 ई. में एक सेना भेजी गयी थी.
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