जैन साहित्य क्या है | What is Jain Literature | यह साहित्य बहुत बड़ा है। लगभग इस साहित्य में धार्मिक साहित्य ही है। संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं में यह साहित्य लिखा गया है
जैन साहित्य क्या है
यह साहित्य बहुत बड़ा है। लगभग इस साहित्य में धार्मिक साहित्य ही है। संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं में यह साहित्य लिखा गया है।भगवान महावीर स्वामी की प्रवृत्तियों का बिंदु मगध रहा है, इसी कारण महावीर स्वामी यहाँ की लोकभाषा अर्धमागधी में अपना उपदेश दिया था. अर्धमागधी उपदेश उपलब्ध जैन आगमों में सुरक्षित है।
जैन आगम 45 हैं व इन्हें श्वेतांबर जैन प्रमाण मानते हैं बल्कि दिगंबर जैन नहीं मानते थे. दिंगबरों के अनुसार आगम साहित्य कालदोष से विच्छिन्न हो गया है। दिगंबर षट्खंडागम को स्वीकार करते हैं जो 12वें अंगदृष्टिवाद का अंश माना गया है। दिगंबरों के पुराने साहित्य की भाषा शौरसेनी है।
जैन पंडितों ने आगे चलकर अपभ्रंश तथा अपभ्रंश की उत्तरकालीन लोक-भाषाओं में रचनाएँ लिखकर भाषा साहित्य को समृद्ध बनाया। जैन साहित्य के ग्रन्थ, आदिकालीन साहित्य में सर्वाधिक संख्या में व सबसे प्रमाणिक रूप में मिलते हैं। जैन रचनाकारों ने पुराण व काव्य, चरित काव्य, कथा काव्य, रास काव्य आदि विविध प्रकार के ग्रंथ की रचना की| स्वयंभू , पुष्प दंत आचार्य है|
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मुख्य जैन कवि मचंद्रजी, सोमप्रभ सूरीजी आदि हैं। मुख्य जैन कवि हिंदुओं में प्रचलित लोककथाओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया व परंपरा से अलग उसकी परिणति अपने मतानुसार दिखाई।
आगम साहित्य की प्राचीनता
- आगम ग्रन्थ बहुत प्राचीन है, और जो स्थान वैदिक साहित्य क्षेत्र में वेद का व बौद्ध साहित्य में त्रिपिटक का है, वही स्थान जैन साहित्य में आगमों का है।
- महावीर स्वामी के आगम ग्रन्थों में उपदेशों और जैन संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाली अनेक कथा-कहानियों का संकलन व जीवन उपयोगी सूत्र व बहुत कुछ है।
- महावीर स्वामी निर्वाण के 160 वर्ष पश्चात मगध के देशों में बहुत भारी अकाल पड़ा, जिसके कारण जैन साधुओं को अन्यत्र विहार करना पड़ा।
- अकाल के समाप्त होने पर श्रमण पाटलिपुत्र में उपस्थित हुए व यहाँ खण्ड-खण्ड करके ग्यारह अंगों का लेखन किया गया, बारहवाँ अंग किसी को याद नहीं था, इसलिए बारहवाँ अंग का संकलन नहीं किया जा सका।
- ‘पाटलिपुत्र-वाचना’ के नाम से इस सम्मेलन को जाना जाता है।
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महत्त्व
ईसा के पूर्व लगभग चौथी शताब्दी से लेकर ईसवी सन् पाँचवी शताब्दी तक की भारतवर्ष की सामाजिक व आर्थिक दशा का चित्रण करने वाला यह साहित्य अनेक दृष्टियों से महत्त्व का है।
आचारांग, सूयगडं, उत्तराध्ययन सूत्र, दसवैकालिक आदि ग्रन्थों में जो जैन श्रमण के आचार-चर्या का विस्तृत वर्णन है, और यह डॉ. विण्टरनीज के कथानानुसार श्रमण-काव्य का प्रतीक है। भाषा और विषय आदि की दृष्टि से जैन आगमों का यह भाग सबसे प्राचीन मालूम होता है।
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जैन साहित्य क्या है FAQ
Ans जैन साहित्य संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं में लिखा गया है.
Ans भगवान महावीर स्वामी की प्रवृत्तियों का बिंदु मगध रहा है.
Ans अर्धमागधी उपदेश उपलब्ध जैन आगमों में सुरक्षित है.
Ans जैन आगम 45 हैं.
Ans दिगंबरों के पुराने साहित्य की भाषा शौरसेनी है.
Ans मुख्य जैन कवि मचंद्रजी, सोमप्रभ सूरीजी आदि हैं.
Ans आचारांग, सूयगडं, उत्तराध्ययन सूत्र, दसवैकालिक आदि ग्रन्थों में जो जैन श्रमण के आचार-चर्या का विस्तृत वर्णन है.
Ans महावीर स्वामी निर्वाण के 160 वर्ष पश्चात मगध के देशों में बहुत भारी अकाल पड़ा था.
Ans जैन रचनाकारों ने पुराण व काव्य, चरित काव्य, कथा काव्य, रास काव्य आदि विविध प्रकार के ग्रंथ की रचना की थी.
Ans जो स्थान वैदिक साहित्य क्षेत्र में वेद का व बौद्ध साहित्य में त्रिपिटक का है, वही स्थान जैन साहित्य में आगमों का है.
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