जहाँगीर की राजपूत नीति | जहाँगीर ने मुगल राजपूत सम्बन्धों की जो बुनियाद रखी थी वह कमोबेश आखिर तक चलती रही। जहाँगीर की राजपूत नीति उसकी गहन सूझ-बूझ का परिणाम थी
जहाँगीर की राजपूत नीति
जहाँगीर ने मुगल राजपूत सम्बन्धों की जो बुनियाद रखी थी वह कमोबेश आखिर तक चलती रही। जहाँगीर की राजपूत नीति उसकी गहन सूझ-बूझ का परिणाम थी. जहाँगीर द्वारा टीका प्रथा का दुरूपयोग निम्न बिन्दुओं से समझा जा सकता है :-
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बीकानेर का राजा रायसिंह अपने ज्येष्ठ पुत्र दलपत से अप्रसन्न था। अतः उसने छोटे लड़के सूरसिंह को बीकानेर का शासक बनाना चाहा। लेकिन मुगल सम्राट जहाँगीर महाराजा रायसिंह से नाराज था, अतः उसने रायसिंह की इच्छा के विरुद्ध 1612 ई. में दलपतसिंह को बीकानेर का शासक बनाया। हालांकि बाद में दलपतसिंह के विद्रोही होने पर जहाँगीर ने 1613 ई. में सूरसिंह को बीकानेर का शासक बनाया।

आमेर के राजा मानसिंह के बड़े पुत्र जगतसिंह की मृत्यु उसके जीवन काल में ही हो जाने से जगतसिंह का ज्येष्ठ पुत्र महासिंह, मानसिंह का वास्तविक उत्तराधिकारी था। लेकिन हिन्दू उत्तराधिकारी प्रथा की पूर्ण उपेक्षा कर जहाँगीर ने मानसिंह के एकमात्र जीवित पुत्र भावसिंह/भवानीसिंह को टीका भेजा तथा उसे चार हजारी मनसब एवं ‘मिर्जा’ की उपाधि प्रदान की।
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जहाँगीर ने कच्छवाहों की बढ़ती हुई शक्ति को नियंत्रित करने के लिए आमेर की सीमा पर नये राठौड़ राज्य ‘किशनगढ़’ की स्थापना की। इसी प्रकार मेवाड़ की शक्ति को नियंत्रित रखने के लिए मालवा की सीमा पर ‘रतलाम’ नामक नये राज्य की स्थापना की। कर्नल टॉड के अनुसार “मुगल बादशाह” अपनी विजयों में से आधी के लिए राठौड़ों की एक लाख तलवारों के अहसानमन्द थे।”
भोज की मृत्यु के पश्चात् बून्दी की गद्दी पर राव रतन आसीन हुआ। जहांगीर के शासनकाल में राव रतन की मनसब और सम्मान में वृद्धि की गई। इसे ‘सरबुन्दराय’ और ‘राजराजा’ की उपाधियों से अलंकृत किया गया। पिता से विमुख हुए शाहजादा खुर्रम को परास्त किया गया।
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जहाँगीर की राजपूत नीति FAQ
Ans – जहाँगीर ने रायसिंह की इच्छा के विरुद्ध 1612 ई. में दलपतसिंह को बीकानेर का शासक बनाया था.
Ans – जहाँगीर ने 1613 ई. में सूरसिंह को बीकानेर का शासक बनाया था.
Ans – जहाँगीर ने कच्छवाहों की बढ़ती हुई शक्ति को नियंत्रित करने के लिए आमेर की सीमा पर नये राठौड़ राज्य ‘किशनगढ़’ की स्थापना की थी.
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