प्रतापगढ़ का गुहिल राजवंश | प्रतापगढ़ पहले मालवा के अन्तर्गत था। प्रतापगढ़ के घोटार्सी नाम के गाँव के 646 ई. के लेख से यहाँ प्रतिहार राजा महेन्द्रपाल का शासन था
प्रतापगढ़ का गुहिल राजवंश
प्रतापगढ़ पहले मालवा के अन्तर्गत था। प्रतापगढ़ के घोटार्सी नाम के गाँव के 646 ई. के लेख से यहाँ प्रतिहार राजा महेन्द्रपाल का शासन था। प्रतिहारों के ह्रास के बाद यहाँ मालवा के परमारों का राज्य रहा। इनके पश्चात् प्रतापगढ़ के स्वामी गुहिलवंशीय क्षत्रिय थे, जिनकी वंश-परम्परा क्षेमसिंह से चलती है।
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क्षेमसिंह महाराजा मोकल का द्वितीय पुत्र था। उत्तराधिकारी सूरजमल के समय में बनने पाया अर्थात् सादड़ी प्राप्त न होने से क्षेमसिंह के वंशज ने मालवा के एक भाग को सुल्तान की अनुकम्पा से अपने लिए प्राप्त कर लिया, जो प्रतापगढ़ के नाम से विख्यात हुआ।
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गुलाम शासक अल्तमश ने 1226 ई. में मालवा पर आक्रमण किया था। जलालुदीन फीरोज खिलजी ने 1291 ई. में मालवा के कुछ प्रदेशों पर आक्रमण किया और 1304 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा के पूर्वी भाग पर अपना अधिकार स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। दिलावरखाँ, जो महमूदशाह तुगलक के द्वारा मालवा का अधिकारी नियुक्त था, 1401 ई. के लगभग मालवा का स्वतन्त्र स्वामी बन बैठा।
इस संघर्षकालीन युग में प्रतापगढ़ के शासक बहुधा मेवाड़ के साथ बने रहे। महारावल सिंहा ने मुगल सेनापति महाबतखाँ को अपने यहाँ सुरक्षा देकर अपनी स्वतन्त्रवृत्ति का प्रमाण दिया। औरंगजेब के फरमान से हरिसिंह को स्वतन्त्र शासक बना दिया गया। 1818 ई. में इस रियासत ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से संधि कर मराठों एवं मेवाड़ के आतंक से छुटकारा पा लिया परंतु यह अंग्रेजों के चंगुल में फँस गई।
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प्रतापगढ़ का गुहिल राजवंश FAQ
Ans – प्रतापगढ़ पहले मालवा के अन्तर्गत था.
Ans – प्रतिहारों के ह्रास के बाद यहाँ मालवा के परमारों का राज्य रहा था.
Ans – प्रतिहारों के बाद प्रतापगढ़ के स्वामी गुहिलवंशीय क्षत्रिय थे.
Ans – क्षेमसिंह महाराजा मोकल का द्वितीय पुत्र था.
Ans – गुलाम शासक अल्तमश ने 1226 ई. में मालवा पर आक्रमण किया था.
Ans – जलालुदीन फीरोज खिलजी ने 1291 ई. में मालवा के कुछ प्रदेशों पर आक्रमण किया था.
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