पाटन का युद्ध | पाटन का युद्ध 20 जून, 1790 को महादजी सिंधिया एवं राजपूत शासकों (जयपुर एवं मारवाड् के मध्य हुआ। इससे पूर्व भी इनके मध्य तुंगा का युद्ध हुआ था
पाटन का युद्ध
पाटन युद्ध 20 जून, 1790 को महादजी सिंधिया एवं राजपूत शासकों (जयपुर एवं मारवाड् के मध्य हुआ। इससे पहले भी 28 जुलाई, 1787 को दौसा के पास तूंगा नामक स्थान पर मराठा सेनानायक महादजी सिंधिया और जयपुर के शासक सवाई प्रतापसिंह के बीच तूंगा युद्ध हुआ था. जिसमें महादजी सिंधिया की पराजय हुई थी.
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सिंधिया की सेना का नेतृत्व लकवा दादा और डी. बोइन ने किया, जबकि अफगान नेता इस्माइल बेग राजपूतों के साथ था। इस युद्ध में राजपूतों की पराजय हुई। युद्ध का प्रमुख कारण महादजी सिंधिया की तूंगा के युद्ध के कारण खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करना था।
पाटन के युद्ध के बाद सिधिया की प्रतिष्ठा पुनःस्थापित हो गई तथा मराठों ने अजमेर पर अधिकार कर लिया तथा राजपूत शासकों से एक बड़ी धनराशि हर्जाने के रूप में वसूल की।
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पाटन का युद्ध FAQ
Ans – पाटन युद्ध 20 जून, 1790 ई. को हुआ था.
Ans – पाटन युद्ध महादजी सिंधिया एवं राजपूत शासकों (जयपुर एवं मारवाड़) के मध्य हुआ था.
Ans – तुंगा का युद्ध 28 जुलाई, 1787 को दौसा के पास तूंगा नामक स्थान पर मराठा सेनानायक महादजी सिंधिया और जयपुर के शासक सवाई प्रतापसिंह के बीच में हुआ था.
Ans – पाटन के युद्ध का कारण महादजी सिंधिया की तूंगा के युद्ध के कारण खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करना था.
Ans – पाटन युद्ध में महादजी सिंधिया की विजय हुई थी.
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