अलाउद्दीन का द्वितीय जालौर अभियान : जालौर का पतन | अमीर खुसरो के अनुसार 1311 ई. में दूसरी बार ‘कमालउद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में खिलजी सेना अधिक संख्या में तथा सुसज्जित रूप में जालौर की ओर बढ़ी
अलाउद्दीन का द्वितीय जालौर अभियान : जालौर का पतन
अमीर खुसरो के अनुसार 1311 ई. में दूसरी बार ‘कमालउद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में खिलजी सेना अधिक संख्या में तथा सुसज्जित रूप में जालौर की ओर बढ़ी। कान्हड़दे ने सभी शक्ति का संगठन शत्रुओं का मुकाबला करने में लगाया। जब किले के पतन की आशा दिखाई न दी तो तुर्की सेना ने दहिया राजपूत बीका को अपनी ओर मिला लिया जो भविष्य में शत्रुओं की सहायता से जालौर का शासक बनने के स्वप्न देख रहा था।
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वह शत्रु सेना को किले के अरक्षित मोर्चे पर ऐसे कठिन मार्ग से ले गया जिधर से शत्रु सेना के आने की कोई सम्भावना नहीं थी। परन्तु जब दहिया के जघन्य कार्य का पता उसकी पत्नी को पड़ा तो उसने देशद्रोही पति को रात को ही मार दिया और अपने पति के द्वारा किये गये विश्वासघात की सूचना कान्हड़दे को दी। पर तब तक शत्रु अरक्षित मोर्चे तक पहुँच चुके थे और शीघ्र ही किले के भीतर घुस गये। अब किले को बचाने का कोई उपाय न था। सभी राजपूत अपने स्वामी के नेतृत्व में प्राणोत्सर्ग के लिए उद्यत हो गये। दुर्ग को बचाने के लिए कन्धाई, जैत उलीचा, जैत देवड़ा, लूणकरण अर्जुन आदि सामन्तों ने अपने प्राणों की आहुति दे डाली, शत्रु सेना फिर भी बढ़ती गयी। अन्त में एक सच्चे राजपूत की भाँति कान्हड़दे भी विरोचित गति को प्राप्त हुआ।

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वीरमदेव ने यह समझकर कि या तो शत्रु उसे मार देंगे या बन्दी बना लेंगे, स्वयं अपने पेट में कटार भौंक ली और मृत्यु की गोद में जा बैठा। इसी अवधि में राजपूत महिलाओं ने जौहर कर अपने सतीव्रत की रक्षा की तथा किले के अन्य निवासी भी अपनी अन्तिम साँस तक शत्रुओं से लड़कर काम आये। इस प्रकार 1311 ई. के लगभग कान्हड़दे की जीवन लीला समाप्त हुई और जालौर के चौहान वंश का पतन हुआ।
जालौर पर अधिकार करके अलाउद्दीन ने जालौर का नाम “जलालाबाद” रखा। इस विजय की स्मृति में सुल्तान ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया, जो अभी भी वहाँ विद्यमान है। कान्हड़दे का भाई मालदेव जालौर के पतन के पश्चात् किसी तरह भीषण संहार से बच निकला। बाद में उसने सुल्तान की सद्भावना अर्जित कर ली जिससे उसने उसे चित्तौड़ के कार्यभार को सँभालने के लिए नियुक्त किया।
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अलाउद्दीन का द्वितीय जालौर अभियान : जालौर का पतन FAQ
Ans – अमीर खुसरो के अनुसार 1311 ई. में दूसरी बार ‘कमालउद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में खिलजी सेना अधिक संख्या में तथा सुसज्जित रूप में जालौर की ओर बढ़ी.
Ans – कान्हड़दे का देहांत 1311 ई. को हुआ था.
Ans – जालौर के चौहान साम्राज्य का अंत कान्हड़दे की देहांत के बाद 1311 ई. में हुआ था.
Ans – जालौर पर अधिकार करके अलाउद्दीन ने जालौर का नाम “जलालाबाद” रखा था.
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