अकबर द्वारा टीका प्रथा का दुरुपयोग | मुगलों ने निश्चित किया था कि किसी भी राजपूत शासक के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा लेकिन वे अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे
अकबर द्वारा टीका प्रथा का दुरुपयोग
आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप (टीका प्रथा का दुरुपयोग) मुगलों ने यह निश्चित किया था कि किसी भी राजपूत शासक के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा लेकिन वे ऐसा कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे जिससे कि वे हस्तक्षेप न कर सकें। बादशाह अकबर ने टीका प्रथा की शुरुआत की थी.
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मुगलों ने उत्तराधिकार के संबंध में ज्येष्ठाधिकार एवं वंशानुगतता को मान्यता तो दी लेकिन इसका उल्लघंन भी किया। कभी-कभी बादशाह की पसंद का व्यक्ति गद्दी पर बैठा, जिससे यह सिद्ध किया गया कि संप्रभुता बादशाह में निहित है। जिससे राजपूतों की चेतना अब मुगल शासक की अनुकम्पा प्राप्त करने तक सीमित रह गई। कुछ हस्तक्षेप के मामले इस प्रकार थे 🙂
- शक्तिसिंह और सगर का मेवाड़ से नाराज होकर अकबर के दरबार में जाना मुगल सत्ता के लिए हितकारी समझा गया।
- मारवाड़ के चन्द्रसेन और उदयसिंह के घरेलू झगड़ों को अकबर ने अपने प्रभाव वर्द्धन का अच्छा साधन माना।
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अकबर द्वारा टीका प्रथा का दुरुपयोग FAQ
Ans – बादशाह अकबर ने टीका प्रथा की शुरुआत की थी.
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