मध्यकालीन परगने का प्रशासन

मध्यकालीन परगने का प्रशासन | राज्य से नीचे की छोटी इकाई परगना होती थी। प्रशासन की सुविधा के लिए प्रत्येक परगने में 20 या इससे अधिक मौजे (गाँव) होते थे

मध्यकालीन परगने का प्रशासन

राज्य से नीचे की छोटी इकाई परगना होती थी। मध्यकाल में राज्य में छोटी इकाइयाँ होती थीं, जिन्हें ग्राम, मण्डल, दुर्ग आदि कहते थे। ग्राम का प्रमुख अधिकारी ग्रामिक, मण्डल का मण्डलपित और दुर्ग का दुर्गाधिपति तथा तलारक्ष होता था। मारवाड़ में भी शेरशाह के प्रभाव से शिकों की इकाई का प्रचलन दिखायी देता है। भाटी गोविन्ददास ने मारवाड़ में परगना शासन को मुगल ढंग पर कर दिया।

प्रशासन की सुविधा के लिए राज्य को परगनों में बांटा गया प्रत्येक परगने में 20 या इससे अधिक मौजे (गाँव) होते थे। जयपुर राज्य में परगना अधिकारियों की तीन श्रेणियाँ थी। प्रन श्रेणी में केवल आमिल आते थे। दूसरी श्रेणी में फौजदार, नायव फौजदार, कोतवाल, खुफियानवीस, पोतदार, तहसीलदार, मुशरिफ, आवारजा- नवीस, दरोगो, श्तायत आदि होते थे। तीसरी श्रेणी में महीनदार आते थे जिनमें हाजरी-नवोस, चोवदार, निशानबदार, दफलरबंद, दफतरी आदि भी होते थे। रोजिनदारों में साधारण मजदूर व नौकर आते थे जिन्हें वेतन प्रतिदिन मिलता था।

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आमिल यह परगने का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी था तथा परगने में इसे सर्वाधिक वेतन मिलता था। आमिल का मुख्य कार्य परगनों में राजस्व की वसूली करना था। भूमि राजस्व की दरे लागू करने व वसूली में अमीन, कानूनगो, पटेल, पटवारी, चौधरी आदि उसको सहायता करते थे। आमिल के अन्य कार्यों में किसानों के हितों का ध्यान रखना, परगने में कृषि को बढ़ावा देना, सूखा पड़ने पर तकावी ऋण बांटना आदि थे। हाकिम सभी शासकीय तथा न्याय सम्बन्धी कार्यों के लिए हाकिम परगने सर्वेसर्वा था, जो सीधा महाराजा द्वारा नियुक्त या पदच्युत किया जाता था।

मध्यकालीन परगने का प्रशासन
मध्यकालीन परगने का प्रशासन

फौजदार

परगने का दूसरा उच्च अधिकारी फौजदार होता था। जो पुलिस और सेना का अध्यक्ष होता था। वह परगने की सीमा की सुरक्षा का प्रबन्ध करता था। वह अमलगुजार, अमीन तथा आमिल को राजस्व वसूल करने के संबंध में सहायता पहुँचाता था। उसके नीचे कई थानों के धानेदार रहते थे, जो चोर और डाकुओं का पता लगाते थे या उनकी निगरानी रखते थे। संगीन डकैती पड़ने पर फौजदार और कभी-कभी ठाकुर स्वयं सवारों के साथ डाकुओं के विरुद्ध अभियान में जाते थे। मारवाड़ में इसे बाहर चढ़ना’ कहते थे।

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ओहदेदार

कहीं-कहीं बड़े परगनों में एक ओहदेदार भी होता था जो हाकिम को शासन में सहायता पहुंचाता था। इन अधिकारियों के सहयोगी शिकदार, कानूनगो, खजांची, शहने आदि होते थे जो वैतनिक तथा फसली अनाज के एवज में राजकीय सेवा करते थे।

खुफिया नवीस

यह परगने की रिपोर्ट दीवान के पास भेजता था। परगने का खजांची ‘पोतदार’ होता था जो परगना खजाने में आमद व खर्च का हिसाब रखता था।

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मध्यकालीन परगने का प्रशासन FAQ

Q 1. राज्य से नीचे की छोटी इकाई कौनसी होती थी?

Ans – राज्य से नीचे की छोटी इकाई परगना होती थी.

Q 2. मध्यकाल में राज्य में छोटी इकाइयाँ कौन-कौनसी थी?

Ans – मध्यकाल में राज्य में छोटी इकाइयाँ होती थीं, जिन्हें ग्राम, मण्डल, दुर्ग आदि कहते थे.

Q 3. प्रत्येक परगने में कितने गाँव होते थे?

Ans – प्रत्येक परगने में 20 या इससे अधिक मौजे (गाँव) होते थे.

Q 4. जयपुर राज्य में परगना अधिकारियों की कितनी श्रेणियाँ थी?

Ans – जयपुर राज्य में परगना अधिकारियों की तीन श्रेणियाँ थी.

Q 5. परगने का दूसरा उच्च अधिकारी कौन होता था?

Ans – परगने का दूसरा उच्च अधिकारी फौजदार होता था.

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