अलाउद्दीन खिलजी का प्रथम जालौर अभियान : सिवाना दुर्ग का पतन | सिवाना दुर्ग का पतन जालौर पहुँचने के पूर्व खिलजी सेना को सिवाना होकर जाना पड़ा
अलाउद्दीन खिलजी का प्रथम जालौर अभियान : सिवाना दुर्ग का पतन
सिवाना दुर्ग का पतन जालौर पहुँचने के पूर्व खिलजी सेना को सिवाना होकर जाना पड़ा। सिवाना का दुर्ग जोधपुर से लगभग 54 मील पश्चिम की ओर है। इसके पूर्व में नागौर, पश्चिम में मलानी, उत्तर में पचपदरा और दक्षिण में जालौर स्थित है। वैसे तो यह किला चारों ओर रेतीले भाग से घिरा हुआ है, परन्तु इसके साथ-साथ इस भाग में छप्पन के पहाड़ों का सिलसिला पूर्व-पश्चिम की रेखा में 48 मील फैला हुआ है। इस पहाड़ी सिलसिले के अन्तर्गत हलदेश्वर का पहाड़ सबसे ऊँचा है जिस पर एक सुदृढ़ दुर्ग बना हुआ है, जिसे सिवाना कहते हैं।
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ये पहाड़ बेरी, बबूल, धाक, पलास, बड़ आदि वृक्षों के समूह से आच्छादित रहने से किसी सीमा तक दुर्गम हैं। प्रारम्भ में यह किला पँवारों के अधिकार में था जिसमें वीरनारायण का नाम विशेष उल्लेखनीय है, जिसे सिवाना दुर्ग और उसी नाम के कस्बे को बसाने का श्रेय है। जब अलाउद्दीन की फौजें जालौर लेने के लिए उत्साही थी उनके लिए सिवाना विजय एक आवश्यक कार्य हो गया। उस समय चौहानों का एक सरदार जिसका नाम सीतलदेव था, दुर्ग का रक्षक था। अलाउद्दीन ने 2 जुलाई, 1308 ई. में एक सेना किले को फतह करने के लिए नियुक्त कर दी।
कान्हड़दे प्रबंध के अनुसार इस सेना ने किले को चारों ओर से घेर लिया। शाही सेना के पाश्वों को पूर्व तथा उत्तर की ओर स्थापित किया गया। इन दोनों पाश्र्वों के बीच ‘मलिक कमालउद्दीनगुर्ग’ ने अपने चुने हुए सैनिकों के साथ जमाव किया। जब शत्रु दल ने मजनिकों से प्रक्षेपास्त्रों की अविरल बौछार का ताँता बाँध दिया तब राजपूतों ने अपने तीरों, गोफनों तथा तेल से सने और आग से जले वस्त्रों को शत्रुओं पर बरसाना शुरू किया। शत्रु सेना के सेनानायक नाहरखाँ तथा भोज को अपने प्राण गँवाने पड़े।
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अमीर खुसरो एवं कान्हड़दे प्रबंध के अनुसार सुल्तान एक बड़ी सेना लेकर सिवाना की ओर चल दिया। उसी अवधि में एक राजद्रोही ‘भावले’ की सहायता से किले के कुण्ड की, जो दुर्ग के निवासियों और सैनिकों के लिए पानी का एकमात्र साधन था, गौरक्त से अपवित्र करवा दिया। किले में भी खाद्य सामग्री समाप्त हो चली थी। जब सर्वनाश निकट था तो राजपूत वीरांगनाओं ने सतीव्रत द्वारा अपनी देह की आहुति दे डाली। किले के फाटक खोल दिये गये और वीर राजपूत केसरिया बाना पहनकर शत्रुओं पर टूट पड़े तथा एक-एक करके वीरगति को प्राप्त हुए। सीतलदेव भी एक वीर योद्धा की भाँति अन्त तक लड़ते हुए मारा गया। सुल्तान ने इस विजय के बाद सिवाना दुर्ग का अधिकार कमालउद्दीन गुर्ग को सौंपा और उसका नाम ‘खैराबाद’ रखा।
इस विजय के बाद मलिक नाइब के नेतृत्व में शत्रु सेना जालौर को घेरने के लिए आगे बढ़ी। परन्तु कान्हड़दे के लड़के वीरमदेव और उसके छोटे भाई मालदेव ने शत्रुओं द्वारा किला लेने के प्रयत्नों को विफल कर दिया और उन्हें दूर मेड़ता के मार्ग तक खदेड़ दिया। इस अवधि में उनका सेनानायक शम्सखाँ अपनी स्त्री और साथियों के साथ बन्दी बनाया गया।
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अलाउद्दीन खिलजी का प्रथम जालौर अभियान : सिवाना दुर्ग का पतन FAQ
Ans – सिवाना का दुर्ग जोधपुर से लगभग 54 मील पश्चिम की ओर है.
Ans – अलाउद्दीन ने 2 जुलाई, 1308 ई. में एक सेना सिवाना किले को फतह करने के लिए नियुक्त कर दी.
Ans – सुल्तान ने विजय के बाद सिवाना दुर्ग का अधिकार कमालउद्दीन गुर्ग को सौंपा था.
Ans – सुल्तान ने विजय के बाद सिवाना दुर्ग का नाम ‘खैराबाद’ रखा था.
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