अकबर की राजपूत नीति | अकबर ने मुगल राजपूत सम्बन्धों की जो बुनियाद रखी थी वह कमोबेश आखिर तक चलती रही। अकबर की राजपूत नीति उसकी गहन सूझ-बूझ का परिणाम थी
अकबर की राजपूत नीति
अकबर ने मुगल राजपूत सम्बन्धों की जो बुनियाद रखी थी वह कमोबेश आखिर तक चलती रही। आर.पी. त्रिपाठी के अनुसार अकबर शाही संघ के प्रति राजपूतों की केवल निष्ठा चाहता था। इसके लिए चार बातें आवश्यक थी
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- राजपूत शासकों को खिराज की एक निश्चित रकम अदा करनी होगी।
- उन्हें अपनी विदेश नीति का निर्धारण, आपसी युद्ध और सौंध करने का अधिकार नहीं होगा लेकिन उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
- आवश्यकता पड़ने पर वे निश्चित संख्या में केन्द्र को सशक्त सैन्य दल उपलब्ध करवायेंगे।
- उन्हें स्वयं को साम्राज्य का अभिन्न अंग समझना होगा न कि व्यक्तिगत इकाई।
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एक मोटे तौर पर अकबर ने राजपूतों के साथ जो संबंध निर्धारित किए उसमें निम्नलिखित बिन्दु थे :
- यह नीति सुलह-ए-कुल (सभी के साथ शांति एवं सुलह) पर आधारित थी। सुलह न किए जाने वाले शासकों को शक्ति के बल पर जीता, जैसे मेवाड़, रणथम्भौर आदि।
- अधीनस्थ शासक को उनकी ‘वतन जागीर दी गई। उसको आंतरिक मामलों में पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई तथा बाहरी आक्रमणों से पूर्ण सुरक्षा की गारण्टी दी गई।
- प्रशासन संचालन एवं युद्ध अभियानों में सम्मिलित किया एवं योग्यता अनुरूप उन्हें ‘मनसब’ प्रदान किया।
- ‘टीका प्रथा’ शुरू की। राज्य के नए उत्तराधिकारी की वैधता ‘टीका प्रथा’ द्वारा की जाती थी। जब कोई राजपूत शासक अपना उत्तराधिकारी चुनता था तो मुगल सम्राट उसे (नवनियुक्त को) ‘टीका’ लगाता था, तब उसे मान्यता मिलती थी।
- सभी राजपूत शासकों की टकसालों की जगह मुगली प्रभाव की मुद्रा शुरू की गई।
- सभी राजपूत राज्य अजमेर सूबे के अन्तर्गत रखे गए।
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अकबर की राजपूत नीति FAQ
Ans – अकबर राजपूत नीति सुलह-ए-कुल (सभी के साथ शांति एवं सुलह) पर आधारित थी.
Ans – ‘टीका प्रथा’ की शुरुआत अकबर ने की थी.
Ans – राज्य के नए उत्तराधिकारी की वैधता ‘टीका प्रथा’ द्वारा की जाती थी.
Ans – अकबर राजपूत नीति के अनुसार सभी राजपूत राज्य अजमेर सूबे के अन्तर्गत रखे गए थे.
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